
बाँध मत किसी बाँध से, रोक न मेरी धार।
समय कभी सहला ज़रा, कर कठोर प्रहार।।1
जब हो जाता है कभी, भावों का अनुबंध।
अजनबी से भी जुड़ता, जन्मों का संबंध।।2
चाहे करना और कुछ, हो जाता कुछ और।
मानव जीवन में चला, जब भी गड़बड़ दौर।।3
जीवन बन जाता सदा, सुखद सुगंधित इत्र।
मिल जाता सौभाग्य से, जो मनचाहा मित्र।।4
मेरी साँसें तुम बनो, तेरी मैं प्रतिश्वास।
मेरी धड़कन जब रुके, तुमको हो आभास।।5
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केशव मोहन पाण्डेय