
ना ऊह ना आह था उसका हाथ तुम्हारे पीठ पर या कंठ पर थपथपाया जा रहा था या टेटूआ दबाया जा रहा था जब शब्द और अर्थ का संबंध तोड़ा जा रहा था कविताओं के मायने बदले जा रहे थे तब तुम कभी कहां थे ? अलगाए जा रहा था जब हिंदुस्तानी गर्भाशय से अंडाणु – शुक्राणु अच्छा बताओ तब तुम हिंदू बने या मुसलमान वो गिनती में कितने थे जिसे देख पा रही थी…
"मणिकर्णिका की ओर हिंदुस्तान"