
मेरा आभास हरदम ही, मेरे लिए खास हरदम हो हवाओं में फ़िज़ाओं में अलग एहसास हरदम हो ज़िन्दगी में बँधी है डोर जबसे अपने ज़ज़्बातों की तुम मेरी साँस हरदम हो, मेरा विश्वास हरदम हो। ***** केशव मोहन पाण्डेय *****
"मेरे लिए खास हरदम हो"मन में उमड़ते विविध भावों का रंग
मेरा आभास हरदम ही, मेरे लिए खास हरदम हो हवाओं में फ़िज़ाओं में अलग एहसास हरदम हो ज़िन्दगी में बँधी है डोर जबसे अपने ज़ज़्बातों की तुम मेरी साँस हरदम हो, मेरा विश्वास हरदम हो। ***** केशव मोहन पाण्डेय *****
"मेरे लिए खास हरदम हो"जब तक साँस बाकी है, तब तक आस बाकी है। अभी तक आँखों में कोई तुम सा खास बाकी है। मिलना और बिछड़ना है अपने लिए एक गाली सी रहेंगे साथ में हरदम हम यह विश्वास बाकी है।। ———– केशव मोहन पाण्डेय ———- सर्वश्री रक्षित अरविंदराय दवे द्वारा गुजराती में अनुदित જ્યાં સુધી શ્વસે છે શ્વાસ, શેષ છે ત્યાં સુધી આશ, આંખોમાં અત્યાર સુધી તુજ સમું સમાયું છે ખાસ. મળવું અને થવું અલગ છે આપણ…
"जब तक साँस बाकी है"मेरी माँ रोज कहती थी, जो अब जज्बात में रहती। अगर मन तेरा पावन हो तो गंगा परात में रहती। संभल के बोलना लल्ला, बड़ी ताक़त है बोली में – गरल तो भर गया सबमें है सुधा भी बात में रहती।। ————- – केशव मोहन पाण्डेय
"अगर मन तेरा पावन हो"