
दिल को जब बात और लगेगी तब उधर भी रात और लगेगी तुम समझते रहे बस खेल जिसे वो सारी मुलाक़ात और लगेगी मुकम्मल होगी गर तेरी कोशिश तो मेरी भी शुरुआत और लगेगी चाँदनी मुखड़े से होती मीठी बातें तो सारी बिखरी खैरात और लगेगी रख दो जो जुल्फों को काँधे पर तो तारों की बारात और लगेगी …………… सलिल सरोज कार्यकारी अधिकारी लोक सभा सचिवालय संसद भवन
"जब बात और लगेगी"