
भारतीय संस्कृति में पूरी तरह से विविधता देखी जाती है। यह विविधता भोजपुरी की विशिष्टता बन जाती है। अलग पहचान बन जाती है। यहीं विविधता तो इस संस्कृति की विशिष्टता है। इसे किसी निश्चित ढ़ाँचे में नहीं गढ़ा जा सकता। इस बलखाती अल्हड़ नदी को किसी बाँध से नहीं घेरा जा सकता। यह तो उस वसंती हवा सी स्वतंत्र है जो अपनी ही मानती है। इसे किसी दिशा-निर्देश का अर्थ नहीं पता। इसका कोई गुरू…
"भोजपुरी लोकगीतों में नारी की प्रासंगिकता"